दिये की आग का हाल कुछ यूँ है कि
लौ मौजूद है, मगर बाती नहीं
क्यों है, कैसे है, इसका पता नहीं,
वर्त्तमान तो है मगर वजूद नहीं।
बिन बाती के, खड़ी है दो बूँद तेल लिए।
हवा के झोंके अक्सर लौ मंद कर देते है, मगर
तूफानों के थम जाने पर भी, भभकती नहीं
बुझती नहीं, बुलंद जलती नज़र आती है।
रात के काले आसमान को ये नीला कर दे,
गहरे अन्धकार को ये रौशनी से भर दे
आशाओं की असीमित ताकत से ये जल रही है ,
ठंडी दुनिया में तपन देकर, ये वर्तमान को
रोशन कर, भविष्य को प्रकाश दे रही है।