Monday, March 3, 2014

मेरी मोहब्बत है खोयी !

थी जो तेरे मेरे दरमियाँ,
खुशियां  रही  ना अब यहाँ कोई,
जाने कहाँ हो गयी है लापता,
इसकी हमको भनक भी ना होई,
थे संजोये सपने सहारे जिसके,
पता नहीं वो मोहब्बत कहाँ है खोयी।


इतनी शिद्दत से करती थी जिसका श्रृंगार,
उस हसीन मुस्कुराहट का निशाँ ना कोई,
नीरस हो गया है अब ये समा,
बिना इसके, ज़िन्दगी भी मेरी सूनी होई,
बनाये रखती थी जो खूबसूरती तुम्हारी,
जाने वो मोहब्बत कहाँ है खोयी।


मौजूदगी से तेरी जागी थी जो किस्मत मेरी,
जाने से तेरे वो बेचारी फिर से है सोयी
कर गयी है मुझको इतना बेबस और तन्हा,
की मेरी रूह भी मेरे संग खूब है रोई ,
बांधे रखा था जिसने हमारे रिश्ते की डोर को,
करके मुझे अधूरा जाने वो मोहब्बत कहाँ है खोयी।




No comments:

Post a Comment