Sunday, April 27, 2014

आजा तू एक फ़साने से ।

आजा तू एक फ़साने से,
अजनबी इस ज़माने से,
ख्वाइशें हैं तुझे छुपालु खुद में,
मिलजा तू मुझे बहाने से। 

ढूंढ़ता हूँ तुझे मैं इस कदर,
कहाँ गयी तू ओ बेखबर,
हो गयी है नम मेरी नज़र,
यूँ तेरे खो जाने से। 
आजा तू एक फ़साने से,
अजनबी इस ज़माने से,
ख्वाइशें हैं तुझे छुपालु खुद में,
मिलजा तू मुझे बहाने से। 

नजाने क्या मेरी हो गयी खता,
हो गयी इस कदर तू लापता,
आ जाये अब तू पास मेरे,
मेरे तुझको मनाने से।
आजा तू एक फ़साने से,
अजनबी इस ज़माने से,
ख्वाइशें हैं तुझे छुपालु खुद में,
मिलजा तू मुझे बहाने से। 

तेरे बिन हूँ मैं बिलकुल अधूरा,
तेरे अक्स से ही हुआ मैं पूरा,
जन्नत मुझे दिखलाजा तू,
अब मेरे करीब आ जाने से। 
आजा तू एक फ़साने से,
अजनबी इस ज़माने से,
ख्वाइशें हैं तुझे छुपालु खुद में,
मिलजा तू मुझे बहाने से। 

4 comments:

  1. Great poem buddy. Especially I liked the lines:
    "ढूंढ़ता हूँ तुझे मैं इस कदर,

    कहाँ गयी तू ओ बेखबर,

    हो गयी है नम मेरी नज़र,

    यूँ तेरे खो जाने से।"

    Keep going bro :) (Y)

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