Sunday, November 13, 2016

अन्त: मन

दिये की आग का हाल कुछ यूँ है कि
लौ मौजूद है, मगर बाती नहीं 
क्यों है, कैसे है, इसका पता नहीं,
वर्त्तमान तो है मगर वजूद नहीं।  

बिन बाती के, खड़ी है दो बूँद तेल लिए। 
हवा के झोंके अक्सर लौ मंद कर देते है, मगर 
तूफानों के थम जाने पर भी, भभकती नहीं 
बुझती नहीं, बुलंद जलती नज़र आती है। 

रात के काले आसमान को ये नीला कर दे,
गहरे अन्धकार को ये रौशनी से भर दे 
आशाओं की असीमित ताकत से ये जल रही है ,
ठंडी दुनिया में तपन देकर, ये वर्तमान को
रोशन कर, भविष्य को प्रकाश दे रही है। 

Wednesday, March 23, 2016

एक एहसास

कुछ बरस पुरानी बात है ये
एक सिलसिला शुरू हो रहा था,
खोज रहा था किसी और को, पर
खुद मैं ही कही खो रहा था

हालात कुछ इस तरह थे की
लगा एक एहसास बोल रहा था,
दिल की तो रज़ा राह पे बढ़ने की थी
पर दिमाग को कुछ ऐतराज़ हो रहा था

हो गया था बेखबर, हो गया था नादान
थी चाहत ऐसी की खुद ही को धोखा दे रहा था
जब खायी थी चोट इस दिल ने तब समझ मुझे आया
की समेटा उसे, जबकि बिखर मैं खुद रहा था।