Sunday, February 23, 2014

तो क्या बात थी !

जज़बा भी था जूनून भी था,
ज़रूरत थी तो एक चिंगारी की,
पता था मंज़िल का , पता थे रास्ते भी,
बस दिशा मिल जाती तो क्या बात थी।

निकल पड़े थे सफ़र पर,
मुकाम पाने को थे तैयार,
थे मुश्किलों से बेखबर,
खतरों कि भनक भी ना थी,
अगर होता इतना सरल ये सफ़र तो क्या बात थी।

मिले थे हमसफ़र राह में,
लेकिन थे सभी अनजान,
मंज़िल थी नज़दीक, बस कुछ कदम की बात थी,
अगर संग होता कोई अपना, तो उस कामयाबी की क्या बात थी।

2 comments:

  1. Waah! Bahut achha likhte ho bhai!! Lekhni
    ko parwaaz do aur badhe chalo! Keep writing.
    abhilekh-dwivedi.blogspot.com
    abhilekh-abhi-lekh.blogspot.com

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  2. thanx brother. parwaaz dene ke liye hi to juda hun aapse. please share my blog and inspire me more,so that i can write more

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